FIR लिखवाने का तरीका : मर्डर की धमकी हो या सरकारी कर्मचारी मांगे रिश्वत; बिना डरे आप एक चिट्ठी से भी दर्ज करवा सकते हैं FIR
बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ अपराध भी बढ़ रहे हैं । कभी बलात्कार, कभी हत्या, तो कभी अपहरण। कोई क्राइम होने पर सबसे पहले एक ही लाइन कही जाती है - FIR करवा दो, लेकिन ज्यादातर लोगों को पता नहीं होता है कि FIR कैसे लिखवाना है। इसके लिए थाने जाना जरूरी है या ऑनलाइन भी FIR दर्ज कराई जा सकती है। अगर पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करना चाहिए, पीड़ित के क्या-क्या अधिकार होते हैं...
आज जरूरत की खबर में हम आपको FIR से जुड़े 10जरूरी सवालों के जवाब दे रहे हैं। जवाब तलाशने में हमारी मदद की है IPS डॉ. शैलेंद्र श्रीवास्तव ने।
सवाल 1- FIR क्या होती है?
जवाब - FIR यानी फर्स्ट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट। दण्ड प्रक्रिया संहिता यानी CrPC 1973 के सेक्शन 154 में FIR क जिक्र है। क्राइम रिलेटेड घटना के संबंध में पुलिस के पास कार्रवाई के लिए दर्ज की गई पहली सूचना को प्राथमिकी या फर्स्ट इंफॉर्मेशन रिपोर्ट यानी FIR कहा जाता है।
सवाल 2- FIR के बाद क्या होता है?
जवाब - CrPC की धारा 157 (1) के मुताबिक, पुलिस मामला दर्ज कर FIR की रिपोर्ट जिले के या संबंधित मजिस्ट्रेट तक 24 घंटे के अंदर भेज देती है।
सवाल 3 - FIR करना क्यों जरूरी है?
जवाब - देश में हर व्यक्ति को शिकायत के तौर पर FIR दर्ज कराने का अधिकार है। अगर कहीं भी संज्ञेय अपराध यानी Cognizable Offense हो रहा है, तो ऐसे में रिपोर्ट दर्ज करवाने के बाद ही पुलिस छानबीन कर सकती है।
सवाल 4 - संज्ञेय अपराध यानी Cognizable Offense किसे कहते हैं?
जवाब- संज्ञेय अपराध का जिक्र क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (CrPC 1973) की धारा 2 (C) और 2 (L) में है। धारा 2 (C) कहती है कि ऐसा अपराध, जिसमें पुलिस किसी व्यक्ति को बिना किसी वारंट के अरेस्ट कर सकती है, वह संज्ञेय अपराध यानी Cognizable Offence है।
नीचे लगे क्रिएटिव में संज्ञेय अपराध की लिस्ट में शामिल कुछ गंभीर अपराधों का जिक्र किया गया है...
सवाल 5- FIR दर्ज करवाने के लिए क्या पैसे देने पड़ते है?जवाब - नहीं, पुलिस FIR दर्ज करने के लिए कोई पैसे नहीं मांग सकती है, न ही FIR की कॉपी देने के लिए कोई रकम ले सकती है।
सवाल 6 - FIR में क्या-क्या लिखा जाता है?जवाब - FIR दर्ज करवाते समय ये बातें लिखी जाती हैं-
- FIR लिखते या लिखवाते वक्त उसमें बारीक से बारीक डिटेल होनी चाहिए। जैसे- अपराध के वक्त चांदनी रात थी या अंधेरा था। लैंप पोस्ट वहां आसपास था कि नहीं। अगर था तो उसकी रोशनी कितनी दूर तक की थी। घटना की तारीख, समय, जगह और आरोपी की पहचान (अगर उसे जानते-पहचानते हैं तब) उसमें होना चाहिए । इसमें घटना के सही तथ्य और घटना में शामिल व्यक्तियों के नाम और डिटेल शामिल होने चाहिए। गवाहों (यदि कोई हो) के नाम भी पुलिस को उनकी जांच में मदद करने के लिए दिए जाने चाहिए।
- गलत जानकारी न दें, IPC 1860 के सेक्शन 203 के तहत आप पर कार्रवाई हो सकती है।
- FIR में कोई भी बयान ऐसा न दें, जिसके बारे में आप खुद ही क्लियर नहीं हैं ।
सवाल 7- पुलिस FIR दर्ज न करे तो क्या करें?
जवाब- ऐसे में आप सीधे पुलिस सुपरिटेंडेंट (SP) या इससे ऊपर डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (DIG) और इंस्पेक्टर जनरल ऑफ पुलिस (IG) से शिकायत कर सकते है।
आप इन अधिकारियों को अपनी शिकायत लिखित रूप में ऑफिस जाकर दें। चाहें तो इसे पोस्ट के जरिए भेज सकते हैं। वे अपने स्तर पर से इस मामले की जांच करेंगे या जांच का ऑर्डर भी देंगे।
कई राज्यों में CM helpline नंबर मौजूद है। आप अपने राज्य के CM तक अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं, तो CM helpline नंबर पर शिकायत करें। अगर महिला के साथ अपराध हुआ है, तो वो FIR दर्ज न होने पर महिला आयोग को इसकी सूचना दे सकती है। इन सबसे भी अगर कोई असर नहीं हुआ, तो सीधे कोर्ट में 156(3) के तहत शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।
सवाल 8- क्या FIR दर्ज करने के लिए हमेशा पुलिस स्टेशन जाना जरूरी है?
जवाब - नहीं, FIR दर्ज करने के लिए हमेशा पुलिस स्टेशन जाना जरूरी नहीं है। इसे आप ऑनलाइन भी दर्ज करा सकते हैं। एक चिट्ठी लिखकर भी दर्ज करा सकते हैं। मेल और फेसबुक के जरिए भी FIR दर्ज करा सकते हैं। पुलिस ऐप का इस्तेमाल करके भी FIR दर्ज करा सकते हैं।
पुलिस खुद की सूचना से FIR दर्ज कर सकती है। कुछ मामलों में पुलिस आपके पास आकर भी रिपोर्ट दर्ज करती है।
सवाल 9- FIR दर्ज करने का मामला अगर झूठा निकला, तब क्या होगा?
जवाब - कभी भी झूठे मामलों की रिपोर्ट करने पर आपके खिलाफ भारतीय दंड संहिता यानी IPC की धारा 182 और 211 के तहत कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
सवाल 10- जीरो FIR क्या होती है ?
जवाब - जीरो FIR वो होती है, जिसे अपराध होने पर किसी भी पुलिस स्टेशन में दर्ज करवा सकते हैं। ज्यादातर देखा गया है कि पुलिस इसे दर्ज करने से मना कर देती है। याद रखें कि CrPC के सेक्शन 154 में इसका जिक्र है। चूंकि इसमें कोई भी क्राइम नहीं लिखा जाता, इसलिए ही इसे जीरो FIR कहते हैं । इस मामले में इंस्पेक्टर या सीनियर इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी एक फॉरवर्डिंग लेटर लिखेगा और एक सिपाही उस लेटर को पुलिस स्टेशन में लेकर जाएगा, जहां का वो केस होगा। इसके बाद उस केस में आगे की जांच शुरू की जाएगी।
1 टिप्पणियाँ
Nice
जवाब देंहटाएं