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महिला पर लगा जब गैंगरेप का आरोप: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, महिला का ऐसा इरादा नहीं था, हाईकोर्ट बोला- 'रेप रोका भी नहीं '

महिला पर लगा जब गैंगरेप का आरोप: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, महिला का ऐसा इरादा नहीं था, हाईकोर्ट बोला- 'रेप रोका भी नहीं '

1994 में पहली बार कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाने की उठी मांग

क्या आपने कभी सुना है कि एक महिला दूसरी महिला का रेप कर सकती है? या कभी किसी महिला को दूसरी महिला का गैंगरेप करने पर सजा मिली हो? साल 1994 में भारत में पहली बार डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ये सवाल उठा और इस पर बहस हुई। जिस केस को लेकर यह मुद्दा उठा उस केस में पहली बार एक महिला को दूसरी लड़की का रेप करने की सजा सुनाई गई।

जस्टिस फाइल्स की चौथी कड़ी में पढ़िए एक महिला पर एक लड़की से रेप करने का आरोप किस आधार पर लगा, कहानी को आगे पढ़ना शुरू कीजिए ।

महिला के सामने होता रहा लड़की का रेप
साल 1994 की बात है, एक नाबालिग लड़की स्कूल की स्पोर्ट्स मीट में शामिल होने के लिए अपने शहर सागर से बाहर गई थी। छात्रा उत्कल एक्सप्रेस से लौटते हुए सागर स्टेशन पर उतरती है। बुखार में तपती बच्ची अपने घर जाने के लिए खुद को तैयार कर ही रही होती है कि भानु प्रताप पटेल नाम का व्यक्ति उसके पास आता है। बच्ची से बहुत ही भरोसे और प्यार से कहता है कि आपके पिता ने मुझे आपको स्टेशन से लाने भेजा है।

बुखार से परेशान लड़की भानु की बात पर भरोसा कर लेती है और बिना ज्यादा सवाल-जवाब किए भानु के साथ चल पड़ती है। बच्ची की इसी मजबूरी का फायदा उठाते हुए वो उसे अपने घर ले आता है। घर लाकर वह बच्ची के साथ जबरदस्ती करना शुरू करता है। लड़की खुद को बचाने की कोशिश करती है, मगर अपराधी के सामने कमजोर पड़ जाती है। इतने में अपराधी की पत्नी मौके पर पहुंचती है।

महिला जैसे ही कमरे में पहुंचती है, उसका पति लड़की के साथ जोर-जबरदस्ती कर रहा होता है। किशोरी खुद को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रही थी। महिला को देख वह उसे बचाने की अपील करती है, गिड़गिड़ाती है, अपनी जान बचाने की भीख मांगती है। मगर ये सब देख महिला अपने पति की हवस से लड़की को बचाने के बजाय, उस बच्ची के पास जाती है उसे थप्पड़ मारती है और कमरे को बाहर से बंद कर घर से बाहर  चली  जाती है।

महिला के कमरे से बाहर जाने के साथ ही लड़की की आबरु बचने की आखिरी उम्मीद भी उसी दरवाजे से बाहर चली जाती है। भानु प्रताप लड़की का कई बार रेप करता है। बड़ी मशक्कत के बाद लड़की किसी तरह मौका देख वहां से भाग निकलती है और अपनी जान बचा पाती है।

पति पर रेप और पत्नी पर गैंगरेप का केस दर्ज हुआ बाद में किशोरी ने अपने परिवार को पूरा किस्सा सुनाया। मामले में केस दर्ज हुआ। भानु प्रताप पर आईपीसी की धारा 323 मारपीट करने की सजा और बलात्कार करने के लिए धारा 376 के तहत केस दर्ज हुआ। जबकि भानु की पत्नी प्रिया पटेल के खिलाफ गैंगरेप की धाराओं में अपराध करने का केस दर्ज हुआ।

भारत के कानूनी इतिहास में पहली बार किसी महिला के खिलाफ किसी महिला का गैंगरेप करने के आरोप में केस दर्ज किया गया। चार्जशीट में रेपिस्ट और उसकी पत्नी दोनों पर गैंगरेप की धारा लगी

क्या एक महिला बलात्कार कर सकती है? क्या सिर्फ पुरुष ही महिला का बलात्कार कर सकता है? यह सवाल सबसे पहले इसी केस के साथ उठना शुरू हुआ।

आईपीसी की धारा 375 के मुताबिक बलात्कार केवल 'पुरुष' कर सकता है। महिला बलात्कार नहीं कर सकती । लेकिन इसी के उलट अगर आईपीसी की धारा 376 ( 2 ) (G) को देखा जाए तो यहां पुरुष के बजाय व्यक्तियों की बात की गई है। इस धारा के तहत एक्ट ऑफ कॉमन इंटेन्शन शामिल किया गया। यानी अगर गैंगरेप में एक से ज्यादा व्यक्ति गैंगरेप की घटना में शामिल हैं, भले ही उन्होंने संबंध नहीं बनाए, मगर उनके खिलाफ भी गैंगरेप का मामला दर्ज किया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा महिला का 'रेप करने का इरादा नहीं था', हाई कोर्ट बोला - 'रेप रोका भी नहीं' प्रिया पटेल बनाम मध्य प्रदेश केस में डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि भले ही एक महिला दूसरी महिला का रेप नहीं कर सकती। मगर आरोपी प्रिया पटेल घटना स्थल पर पहुंची थी, वह अपने पति भानु प्रताप को लड़की का रेप करने से रोक सकती थी। मगर उसने ऐसा नहीं किया बल्कि खुद कमरे का दरवाजा बंद कर चली गई। ऐसा कर उसने खुद रेप की घटना को बढ़ावा दिया है, इसलिए प्रिया पटेल के खिलाफ धारा 376 ( 2 ) की पहली परिभाषा के तहत गैंगरेप का मुकदमा दर्ज होना चाहिए ।

प्रिया पटेल हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची। सुप्रीम कोर्ट ने प्रिया के पक्ष में फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट में दलील दी गई कि आईपीसी की धारा 375 की परिभाषा के अनुसार बलात्कार का केवल पुरुष कर सकता है। महिला रेप नहीं कर सकती है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक महिला का बलात्कार करने का इरादा नहीं हो सकता है, क्योंकि यह संभव नहीं है और बायोलॉजिकल रूप से समझ से बाहर है और इसलिए, उसे न तो बलात्कार के लिए और न ही सामूहिक बलात्कार के लिए दोषी ठहराया जा सकता है। अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 376(2) के स्पष्टीकरण में सामान्य इरादे की बात कही गई है, जो बलात्कार करने के इरादे से संबंधित है। यह नहीं कहा जा सकता कि एक महिला का बलात्कार करने का इरादा है। और इसलिए, सामूहिक बलात्कार के लिए एक महिला के खिलाफ मुकदमा नहीं  चलाया  जा सकता।

आईपीसी के सेक्शन 34 और 376 में मिलती है कड़ी सजा
डॉ अनुष्का लॉ कॉलेज के छात्र कृष्णराज चौधरी बताते हैं कि IPC के सेक्शन 34 के तहत अगर कोई भी आपराधिक गतिविधि किसी भी समूह द्वारा की जा रही है। उस घटना को अंजाम देने वाला भले ही एक व्यक्ति है, मगर उस अपराध को पूरा कराने के पीछे उस समूह का हाथ है तो उस समूह के हर व्यक्ति के ऊपर भी वही आपराधिक धाराएं लगाई जाएंगी जोकि मुख्य अपराधी के ऊपर लगाई जा रही है। इसे 'कॉमन इंटेन्शन' यानी सामान्य इरादे से अपराध करना कहा जाता है।

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धारा 376(2)(G) में सामूहिक बलात्कार की सजा दी गई है
और कहा गया है कि जब किसी महिला का, व्यक्तियों के समूह या गिरोह द्वारा बलात्कार किया जाता है तो उन्हें कम से कम 10 साल की कठोर कारावास की सजा हो सकती है। इसे आजीवन कारावास में भी तब्दील किया जा सकता है। साथ ही दोषियों को जुर्माना देने या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है। इस तरह के अपराध के पीड़िता के लिए सभी मेडिकल खर्चों और पुनर्वास के लिए जुर्माना लगाना, उचित और न्यायसंगत होगा।

कोर्ट में कई बार उठी कानून को जेंडर न्यूट्रल करने की मांग
आज देश की कई अदालत कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाने की मांग कर रही हैं। प्रिया पटेल बनाम मध्य प्रदेश वह पहला केस है जिसमें जेंडर न्यूट्रल कानून होने की मांग उठी थी।

केरल हाई कोर्ट ने जून 2022 में कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा-376 लैंगिक रूप से समान नहीं है। कोर्ट ने चिंता व्यक्त की कि अगर कोई महिला शादी के झूठे वादे के तहत किसी पुरुष को झांसा देती है, तो उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। लेकिन वहीं इसी अपराध के लिए किसी पुरुष पर मुकदमा किया जा सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसे कानून में लैंगिक समानता की जरूरत है।

इसी तरह LGBTQA+ कम्यूनिटी के साथ होने वाली यौन उत्पीड़न की घटनाओं को भी दर्ज नहीं किया जाता, क्योंकि कानून जेंडर न्यूट्रल नहीं है। साल 2018 में, सुप्रीम कोर्ट में क्रिमिनल जस्टिस सोसाइटी ऑफ इंडिया नाम के NGO ने एक पिटीशन फाइल की थी। इसमें मांग की गई है कि पुरुषों और ट्रांसजेंडर्स को भी अपने साथ रेप होने पर शिकायत दर्ज कराने का अधिकार दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह मांग वैलिड है, लेकिन एक मौजूदा प्रोविजन को नए कानून के लाए बिना खत्म नहीं किया जा सकता।

Written By - KR Choudhary

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