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Landmark Judgement of Court on 498 - A : New Guidelines on 498 - A IPC

This article is written by Krishnaraj Choudhary, Student of  Dr. Anushka Law College Udaipur. The author in this article has discussed the Landmark Judgement of Court on 498 - A of IPC.

Landmark Judgement of Court on 498 - A : New Guidelines on 498 - A of IPC

आइये जानते है

जैसे ही Husband और Wife के बीच Dispute शुरु होता है , सबसे पहला कदम होता है लड़की की साइड से 498 - A की एफआईआर दर्ज करना , 498 - A की एफआईआर दर्ज करना मतलब पुरे क्रिमिनल लॉ के मोशन को सेट करना , एफआईआर दर्ज होती है और आजकल  एफआईआर के कंटेंट भी Same Generally use होते है की मेरे पति ने मुझे दहेज़ के लिए प्रताड़ित किया सास ससुर ने ये किया ननंद देवर ने ये किया एक फिक्स परिपाठी आज के ज़माने में चलती आ रही है ओर इन बातो को अब देश की न्यायालय भी समझने लगे है और मानने लगी है की बहुत सारे 498 - A के केस गलत आ रहे है हालाँकि कुछ रियल केस भी होते है जहा पे सही में महिला का उतप्रताडीत  किया जाता है दहेज़ के लिए लेकिन ऐसा आंकड़े कहते है की बहुत सारे केस ऐसे है जो गलत आरोप पर आधारित होते है | अब जब ये न्यायालय को पता लगने लगा तब धीरे धीरे कई सारे ऐसे जजमेंट आये जो की फेवर करने लगे है Husband और उनकी Family को , सबसे बड़ा इसमे लेंडमार्क जजमेंट आया था 

अर्नेश कुमार V/S स्टेट ऑफ़ बिहार 2 जुलाई 2014 : इस केस के जजमेंट में ऑनरेबल सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ने इस बात को साफ़ किया था की अगर आपको 498 - A में अरेस्ट करना ही है तो आपको पहले 41 - A नोटिस की कम्प्लेंट करनी होगी ओर अगर कोई Injury केस है या कुछ ऐसा सीरियस Injury है जिसमे लड़की को हुयी तो बात अलग है अन्यथा किसी भी केस में आप  Generally अब आप Husband और उनकी Family को अरेस्ट नहीं कर सकते | 

तो इस केस के आने के बाद एक बहुत बड़ा चेंज हुआ था , लेकिन हाल ही में UP हाईकोर्ट ने एक और जजमेंट दिया है जो इससे एक ओर स्टेप आगे जाता है उस जजमेंट में ऑनरेबल हाईकोर्ट ने कई साड़ी 498 - A को लेकर गाइडलाइन जारी कर दी है पुरे स्टेट के अंदर ओर जब एक हाईकोर्ट ने ऐसा आर्डर पास किया है तो ऐसी उम्मीद है की बाकी सारे हाईकोर्ट भी इस पर जल्दी अपना निर्णय लाएगी क्योकि इसकी भावना कही न कही सेम रहती है  | 

तो आज हम ये सोच रहे है की इस बात को गाइडलाइन को विस्तार से जाने उस लैंडमार्क जजमेंट के साथ केस का नाम है - 

मुकेश बंसल V/S स्टेट ऑफ़ उत्तरप्रदेश 13 जून 2022 : इस केस में 498 - A की एफआईआर दर्ज होती है , जब ये मामला आगे इन्वेस्टीगेशन होता है चार्जशीट फाइल हो जाती है पुरे परिवार के खिलाफ | जब चार्जशीट फाइल होती है नीचे Cognigence लिया जाता है ट्रायल Proceed करती है तो अल्टीमेटली जो ट्रायल कोर्ट होती है वो इसमें चार्जेज को फ्रेम करती है , फ्रेम चार्जेज करती है  Husband और उनकी Family की तरफ से उस चार्ज को वो चेलेंज करते है वो हायर कोर्ट में ओर इस केस में UP हाईकोर्ट में पहुच कर चार्ज के खिलाफ अपने रिवीजन पीठीशन को फाइल करते है रिवीजन पीठीशन के बहाने जबिस कोर्ट के पास पूरा एक मुद्दा आता है तो कोर्ट उस एफआईआर को पढ़ हैरान हो जाती है , कोर्ट उस एफआईआर में पढता है की इस तरह के जो आरोप लगाये गए है वो सोच से भी परे है |  ऑनरेबल जज ये पढ़ कर हैरान हो जाता है की किस तरीके से ससुर और उनके घर के जो पुरुष सदस्य के खिलाफ सेक्सुअल आरोप लगाये गए है तब ऑनरेबल कोर्ट उस आर्डर में लिखता है की आजकल ये बहुत आम हो गया है की आप 498 - A की एफआईआर में इस तरह की आरोप लायेंगे ओर लड़की की साइड से न जाने केसे केसे आरोप लगते है जो की समाज में सोचने लायक है इसीलिए ससुर ओर सास को उस चार्ज से डिस्चार्ज कर देते है यानि उनके खिलाफ उस पीठीशन को Allow कर देते है लेकिन Husband के खिलाफ उस पीठीशन को ख़ारिज कर देते है ये कहते हुए की आपके खिलाफ 498 - A के आरोप है इसीलिए हम चार्ज के स्टेज में इंटरफेयर नहीं करेंगे लेकिन सास ओर ससुर को बहुत बड़ा रिलीफ दिया क्योकि ऑनरेबल कोर्ट भी इस बात को मानने लगी है की कही न कही गलत आरोप लगने शुरू हो गए है , अगर आप देखेंगे की आजकल जबसे लड़की की साइड से एफआईआर दर्ज होती है तो 354 IPC को शामिल किया जाता है जो कहता है की - किसी भी महिला की लज्जा को भंग करना | ससुर ओर देवर जेठ पर ऐसे आरोप लगाया जाता है | 

 कही बार ऐसे केस भी देखने को मिलते है जहा पे लड़की अपने देवर जेठ या ससुर पे रेप के आरोप भी लगाते है अब 100 में से कुछ ऐसे रेयर केस होंगे जहा पे ऐसा होता होगा , लेकिन अधिकतर केस में ऐसा नहीं नहीं होता क्योकि आज भी हमारा समाज ऐसा नहीं है इसीलिए ऑनरेबल हाईकोर्ट और बाकि देश की सभी कोर्ट इस बात को मानने लगी है, अब जब ऑनरेबल हाईकोर्ट UP इस केस को Decide कर रही थी तो उन्हें लगा की ये एक बहुत प्रॉपर टाइम है की हम इस केस में 498 - A पर गाइडलाइन दे , उन्होंने इस केस को Decide करने के साथ 4 महत्वपूर्ण गाइडलाइन दी | 

आइये जानते है आज उस महत्वपूर्ण गाइडलाइन के बारे मे जानेंगे ताकि हमें हमारे केस में जो अन्याय हमारे साथ हो उसके लिए हमें लड़ने के लिए हमें एक कही न कही उसके खिलाफ लड़ने के लिए एक आधार मिले

  1. सबसे पहली गाइडलाइन जारी की ओर उन्होंने कहा की जेसे ही अगर एफआईआर दर्ज होती है या कंप्लेंट थाने में आती है उसके 2 महीने तक किसी की भी गिरफ़्तारी नहीं होगी , 2 महीने का एक कुलिंग टाइम रखा जायेगा और जेसे ही वो थाने में कम्प्लेंट आएगी या एफआईआर दर्ज होगी तुरंत वो एफआईआर या कम्प्लेंट जाएगी फॅमिली वेलफेयर कमेटी को , ओर फमिली वेलफेयर कमेटी उस 2 महीने के टाइम में उस केस का अवलोकन करेगी ओर देखेगी की क्या इसमें सही है ओर क्या सही नहीं है | तो सबसे बड़ा जजमेंट ये है की 2 महीने तक गिरफ्तारी नहीं होगी , हालाँकि अगर Injury है या किसी तरह की मारपीट हुयी है जहा कोई ऐसी मेडिकल रिपोर्ट बन रही है बात अलग है लेकिन अधिकतर केस में आजकल Injury न होकर सिर्फ ये आरोप होते है की मुझे 498 - A के लिये यानि दहेज़ के लिए तंग कर रहे है उन केस में गिरफ्तारी रोक दी गयी है | 2 महीने का कुलिंग टाइम दिया गया है की आप 2 महीने आपस में बैठकर शांति से बात करे |
  2. दूसरी गाइडलाइन में बोला की फॅमिली वेलफेयर कमेटी में जो भी मेम्बर होंगे उनके साथ साथ हर पक्ष के 4 फॅमिली के सीनियर मेम्बर भी होंगे | आप इस जजमेंट के गाइडलाइन से इस बात को जान पाएंगे की केसे ऑनरेबल कोर्ट ने समाज के परिपेक्ष में ध्यान में रखकर उस समाज के उस परिवार के 4 बड़े सदस्यों को बुलाया क्योकि आज भी हमारे समाज में शादी को एक बहुत ही महत्वपूर्ण रिलेशन माना जाता जाता है जहा आज भी डिवोर्स के नाम को बहुत कम लिया जाता है , इसीलिए ऑनरेबल कोर्ट का मानना है की शायद 4 बड़े लोगो को उस समाज के या उस परिवार के उस फॅमिली वेलफेयर कमेटी में बैठेंगे तो शायद हो सकता है की जोश में आप निर्णय ले रहे है उसको आप वापस रोल बेक करे ओर शायद आप अपनी कम्प्लेंट वापस लेले और शायद पति पत्नी के बिच में मध्यस्था हो जाये |
  3. तीसरी गाइडलाइन में बोला की जो फॅमिली वेलफेयर कमेटी है 2 महीने में अच्छे से जाँच करेगी जिनके बयान लेने है या जिन जिन से जानना है वो करेगी ओर उसके बाद अपनी फाइनली रिपोर्ट वापस उस पुलिस थाने में भेज देगी अब पुलिस थाने में जब वो रिपोर्ट भेजेगी तो उसमे सारी बातो को लिखा जायेगा , अब अगर आप इस प्रोसेस को 2 महीने बाद देखेंगे तो शायद हो सकता है की बहुत जगह दोनों के बीच मध्यस्था हो भी जाये 
  4. चौथी गाइडलाइन में ऑनरेबल हाईकोर्ट ने बोला है की इन मामलो की जाँच उन्ही आयु या जाँच अधिकारी से कराएँगे जिन्हें कम से कम 1 सप्ताह की ट्रेनिंग दी गयी है अगर आपको इस मामले की ट्रेनिंग नही दी गयी है तो वो इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर इसकी जाँच नहीं कर सकता |

 

कही बार आपने देखा होगा की जब अर्नेश कुमार का जजमेंट इतना साफ़ है की ओटोमेटिक अरेस्ट नही होगी फिर भी कुछ पुलिस अधिकारी जिन्हें इस लॉ का ध्यान नहीं होता है वो आकर अरेस्ट कर लेते है फिर हम अल्टीमेंटली कंटेम्ट लगाते है ओर फिर मामला कोर्ट में चलता है लेकिन एक बार तो अरेस्ट हो जाते है इसीलिए ऑनरेबल हाईकोर्ट ने इस बात को ध्यान में रखते हुए बोला की 1 सप्ताह की ट्रेनिंग होगी हर उस इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर की जो 498 - A के केस की जांच करेगा | इन 4 बातो से ऑनरेबल हाईकोर्ट ने इस जजमेंट को सेट किया है ओर लेंडमार्क में इस जजमेंट को पास किया है |

अब दोस्तों ये 4 बाते जानने के बाद हमें इस बात का ध्यान होगा की 498 - A में डायरेक्ट अरेस्ट नही होगी अगर कोई सीरियस Injury का मामला हो | और आपका अर्नेश कुमार के मामले से भी आप वाकिब होंगे की जहा पर 41 - A CrPC का नोटिस देना जरुरी है |

41 - A CrPC का नोटिस ये कहता है की जब भी आप किसी को अरेस्ट करने का सोचते है तो आप उन्हें पहले ये नोटिस देंगे ओर बताएँगे की आप आये और हमारे पास अपना पक्ष रखे , उसके बाद अगर आप संतुष्ट नहीं है या अगर कोई व्यक्ति 41 - A नोटिस की अवहेलना कर रहा है ओर उस नोटिस की अवहेलना में पुलिस स्टेशन में नहीं आ रहा है तो ही गिरफ्तारी होगी अन्यथा गिरफ्तारी नही होगी |

अर्नेश कुमार के जजमेंट के बाद एक बड़ा बदलाव ये भी आया की अर्नेश कुमार जजमेंट ने बोला की अगर कोई पुलिस ऑफिसर इस बात को नहीं मानता तो उसके खिलाफ कंटेम्ट होगा ओर वो न्यायिक अधिकारी जो इस जजमेंट को फोलो नही करके रिमांड दे देते है उनके खिलाफ भी कार्यवाही की जाएगी | 

अगर आपको लगता है की इसके बाद भी कोई परेशानी है तो नीचे दी गयी लिंक पर पहुच कर या कमेन्ट करके हमें आपकी परेशानी बता सकते है तो यहाँ Click Kare 

Written By - KR Choudhary Sir  

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