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धारा 34 (भारतीय दंड संहिता) : Section 34 of IPC

This article is written by Krishnaraj Choudhary, Student of  Dr. Anushka Law College Udaipur. The author in this article has discussed the concept of  Section 34 of IPC.

 

धारा 34 (भारतीय दंड संहिता)



सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य
भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के अनुसार, जब एक आपराधिक कृत्य सभी व्यक्तियों ने सामान्य इरादे से किया हो, तो प्रत्येक व्यक्ति ऐसे कार्य के लिए जिम्मेदार होता है जैसे कि अपराध उसके अकेले के द्वारा ही किया गया हो।
 

धारा 34 आई. पी. सी. (सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य)
भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 34 में किसी अपराध की सजा का का प्रावधान नहीं दिया गया है, बल्कि इस धारा में एक ऐसे अपराध के बारे में बताया गया है, जो किसी अन्य अपराध के साथ किया गया हो। कभी किसी भी आरोपी पर उसके द्वारा किये गए किसी भी अपराध में केवल एक ही धारा 34 का प्रयोग नहीं हो सकता है, यदि किसी आरोपी पर धारा 34 लगाई गयी है, तो उस व्यक्ति पर धारा 34 के साथ कोई अन्य अपराध की धारा अवश्य ही लगाई गयी होगी। भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के अनुसार यदि किसी आपराधिक कार्य को एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा उन सभी के सामान्य आशय को अग्रसर बनाने में किया जाता है, ऐसे अपराध में सभी अपराधियों के इरादे एक सामान होते हैं, और वे अपने कार्य को अंजाम देने के लिए पहले से ही आपस में उचित प्लान बना चुके हों, तो ऐसे व्यक्तियों में से हर एक व्यक्ति उस आपराधिक कार्य को करने के लिए सभी लोगों के साथ अपना दायित्व निभाता है, तो ऐसी स्तिथि में अपराध में शामिल प्रत्येक व्यक्ति सजा का कुछ इस प्रकार हक़दार होता है, मानो वह कार्य अकेले उसी व्यक्ति ने किया हो।
 

कब लगाई जाती है धारा 34
यदि किसी व्यक्ति ने भारतीय कानून के अनुसार कोई अपराध किया है, जिसमें उसके साथ कुछ और भी लोग उसी अपराध को करने के इरादे से शामिल हैं, तो उन सभी अपराधियों पर उनके द्वारा किये हुए अपराध के साथ - साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 34 भी लगाई जाती है। उदाहरण के लिए तीन व्यक्ति आपसी सहमति से किसी अन्य व्यक्ति को घायल करना / मारना / या किसी प्रकार की हानि पहुंचाना चाहते हैं, और वे सभी लोग इस काम को अंजाम देने के लिए अपने स्थान से रवाना हो कर वहां पहुंच जाते हैं, जहां वह व्यक्ति मौजूद होता है। जैसे ही उन लोगों को वह व्यक्ति दिखाई देता है, तो उन तीनों लोगों में से एक व्यक्ति उस व्यक्ति पर किसी हथियार आदि से हमला कर देता है, किंतु वह व्यक्ति किसी प्रकार इस हमले को झेल लेता है, और उन तीन हमलावरों को सामने देखकर अपनी जान बचाने के लिए वहां से भाग निकलता है। जब तक हमलावर उसे पकड़ पाते, वहां कुछ और लोग एकत्रित हो जाते हैं, जिन्हें देख कर सभी हमलावर वहां से भाग निकलते हैं।

इस पूरी प्रक्रिया में उस व्यक्ति को घायल करने का कार्य केवल एक ही व्यक्ति ने किया, जिस कारण वह भारतीय दंड संहिता की धारा 323 के अंतर्गत अपराधी है, किंतु अन्य दो व्यक्ति भी उस व्यक्ति को घायल करने की नीयत से ही उस तीसरे व्यक्ति के साथ वहां गए थे। अतः वे तीनों व्यक्ति भी उस व्यक्ति पर हमला करने के अपराधी हैं, क्योंकि उन सभी लोगों का आम प्रयोजन या इरादा एक समान था। उन सभी पर धारा 323 के साथ - साथ भारतीय दंड संहिता की धारा 34 भी आरोपित की जाएगी। यदि वे भी उस अभियोग में दोषी पाए जाते हैं, तो दोनों को उस हमलावर व्यक्ति के समान ही दंडित किया जाएगा।
 

धारा 34 के सामान्य तत्व
भारतीय दंड संहिता की धारा 34 के पूर्ण होने के लिए निम्नलिखित शर्तों का पूरा होना अनिवार्य होता है

  • किसी प्रकार की आपराधिक गतिविधि 
  • आपराधिक गतिविधि में एक से अधिक लोग लिप्त होने चाहिए 
  • अपराध करने का सभी लोगों का इरादा एक ही होना चाहिए 
  • आपराधिक गतिविधि में सभी आरोपियों की भागीदारी होनी चाहिए

 
धारा 34 के अपराध में बचने के लिए एक वकील की जरुरत क्यों होती है?
भारतीय दंड संहिता में धारा 34 का अपराध किसी व्यक्तिगत अपराध की बात नहीं करता है, किन्तु यह धारा किसी अन्य अपराध के साथ लगायी जाती है। इस धारा के अपराध में शामिल होने वाले सभी आरोपियों को एक सामान सजा देने का प्रावधान होता है, भले ही अपराध करने के लिए शामिल होने वाले सभी लोगों में से किसी एक ने ही अपराध को अंजाम दिया हो। ऐसे अपराध से किसी भी आरोपी का बच निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, इसमें आरोपी को निर्दोष साबित कर पाना बहुत ही कठिन हो जाता है। ऐसी विकट परिस्तिथि से निपटने के लिए केवल एक अपराधिक वकील ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जो किसी भी आरोपी को बचाने के लिए उचित रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है, और अगर वह वकील अपने क्षेत्र में निपुण वकील है, तो वह आरोपी को उसके आरोप से मुक्त भी करा सकता है। और सामान्य आशय को अग्रसर करने में कई व्यक्तियों द्वारा किए गए कार्य जैसे मामलों में ऐसे किसी वकील को नियुक्त करना चाहिए जो कि ऐसे मामलों में पहले से ही पारंगत हो, और धारा 34 जैसे मामलों को उचित तरीके से सुलझा सकता हो। जिससे आपके केस को जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।

सबसे बड़ी बात तो यह है, कि इस धारा को भी कम नहीं समझना चाहिए, क्योंकि यदि किसी व्यक्ति पर यह छोटी धारा भी लग जाती है, तो वह व्यक्ति किसी भी सरकारी नौकरी में बैठने के योग्य नहीं रह जाता है, जिससे उसके भविष्य पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं, तो इसीलिए किसी भी मामले में किसी योग्य वकील को नियुक्त करना ही सबसे ज्यादा समझदारी का काम होता है।

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