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धारा 406 (भारतीय दंड संहिता) : Section 406 of IPC

This article is written by Krishnaraj Choudhary, Student of  Dr. Anushka Law College Udaipur. The author in this article has discussed the concept of  Section 406 of IPC.


धारा 406 (भारतीय दंड संहिता)



भारतीय दंड संहिता की धारा 406 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति ने किसी दूसरे व्यक्ति को विश्वास / भरोसे पे संपत्ति दी है और उस दूसरे व्यक्ति ने उस संपत्ति का ग़लत इस्तेमाल किया / किसी अन्य व्यक्ति को बेच दिया / पहले व्यक्ति के माँगने पर नही लौटाया, तो वह विश्वास के आपराधिक हनन का दोषी होगा और उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या आर्थिक दंड, या दोनों से दंडित किया जाएगा ।

लागू अपराध
विश्वास का आपराधिक हनन
सजा - तीन वर्ष कारावास या आर्थिक दंड या दोनों
यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा विचारणीय है।
                                         
यह अपराध न्यायालय की अनुमति से पीड़ित व्यक्ति (संपत्ति के मालिक जिसका विश्वास का भंग हुआ है) के द्वारा समझौता करने योग्य है।

आई. पी. सी. की धारा 406 (विश्वास का आपराधिक हनन)
आजकल के युग में हम लोगों को समाचार पत्रों, न्यूज चैनलों और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म जैसे फेसबुक, ट्विटर इत्यादि में देश विदेश हर जगह, आपराधिक गतिविधियों के बारे में पढ़ने और सुनने को मिलता रहता है, जैसे बलात्कार, हत्या, चोरी, डकैती, किसी को धोखा देना इत्यादि। इस बात में कोई भी संदेह नहीं है, कि पीड़ित व्यक्तियों को न्याय प्रदान कराने और अपराधियों को सजा देने के लिए हर देश ने कुछ न कुछ कानून लागू किए हैं। हमारे देश में भी आपराधिक कृत्यों की सजा देने के लिए भारतीय दंड संहिता और भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता जैसे बहुत महत्वपूर्ण कानूनों को लागू किया गया है।
 

क्या होती है धारा 406?
भारतीय दंड संहिता की धारा 406 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की सम्पति, या उसकी किसी भी प्रकार की निधि इत्यादि पर अल्पकालिक या थोड़े समय के लिए अधिकार मिलने पर उसका दुरप्रयोग करना शुरू कर देता है, उस संपत्ति का व्यय करता है, या उसे किसी फर्जी तरीके से अपने नाम पर परिवर्तित करवा लेता है, तो वह विश्वास के आपराधिक हनन की परिभाषा के अंतगर्त आता है, जिसका उल्लेख आई. पी. सी. की धारा 405 में स्पष्टीकरण के साथ किया गया है।

आइये आई. पी. सी. की धारा 406 को एक उदहारण के साथ समझते हैं, यदि कोई कम्पनी का मालिक उसी कम्पनी के किसी कर्मचारी के भविष्य - निधि कहते के लिए उसकी मजदूरी में से कुछ राशि की कटौती कर लेता है, पर उसे उस कर्मचारी के निधि खाता में जमा न करके उसका दुरप्रयोग या अपने लिए प्रयोग करता है, तो वह मालिक इस धारा के अंतर्गत दोषी ठहराया जा सकता है। केवल यह ही नहीं विश्वास का आपराधिक हनन किसी भी विल, निधि, अचल सम्पति या चल सम्पति से सम्बन्धित हो सकता है, और जब पीड़ित व्यक्ति इस बात की शिकायत अपने नजदीकी किसी भी पुलिस थाने में करता है, तो पीड़ित व्यक्ति की सूचना पर पुलिस के अधिकारी द्वारा इस बात का संज्ञान लिया जाता है। भारतीय दंड संहिता में वर्णित इस धारा का अपराध गैर - जमानती अपराध माना गया है, इसलिए पुलिस के अधिकारी भी इस संगीन अपराध की अच्छे ढंग से छान बीन करते हैं।
 

आई. पी. सी. की धारा 406 के अंतर्गत सजा का प्रावधान
भारतीय दंड संहिता की धारा 406 में विश्वास के आपराधिक हनन के लिए न्यायालय द्वारा सुनाई जाने वाली सजा है। और जहां तक इस सजा के स्वयं अपराध का प्रश्न है, तो उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 405 में वर्णित किया गया है। भारतीय दंड संहिता में धारा 407 से धारा 409 तक अलग - अलग प्रावधानों के अनुसार अलग - अलग प्रकार से विश्वास के आपराधिक हनन की सजा का वर्णन किया गया है।

भारतीय दंड संहिता की धारा 406 में किसी व्यक्ति के विश्वास का आपराधिक हनन करने वाले व्यक्ति को न्यायालय द्वारा कारावास की सजा सुनाई जा सकती है, जिसकी समय सीमा को 3, बर्षों तक बढ़ाया जा सकता है, और केवल यह ही नहीं कारावास की सजा के साथ - साथ दोषी व्यक्ति को आर्थिक दंड से भी दण्डित किया जा सकता है, या फिर भारतीय दंड संहिता में ऐसे दोषी व्यक्ति पर ये दोनों सजा लगाए जाने का भी प्रावधान दिया गया है। आर्थिक दंड की राशि न्यायालय अपने विवेक से निर्धारित करती है, जिसमें न्यायालय आरोपी व्यक्ति के द्वारा किया गया जुर्म की गहराई और आरोपी की हैसियत को ध्यान में रखती है। वहीं धारा 407 और 408 में सात - सात बर्ष की कारावास की साधारण और कठिन सज़ा लिखी गयी है, और धारा 409 में दोषी व्यक्ति को कम से कम 10 बर्ष, की कारावास की सजा और अधिकतम आजीवम कारावास जैसे भीषण दंड का प्रावधान दिया गया है।
 

धारा 406 के मामले में जमानत का प्रावधान
भारतीय दंड संहिता की धारा 406 में एक गैर जमानती अपराध की सजा का प्रावधान दिया गया है, जिसका मतलब होता है, कि धारा 406 के अनुसार आरोप लगाए गए व्यक्ति को जमानत बहुत ही कठिनाई से प्राप्त होती है, या यह भी कह सकते हैं, कि जमानत प्राप्त ही नहीं होती है। ऐसे अपराध में एक आरोपी को पुलिस स्टेशन से तो जमानत प्राप्त हो ही नहीं सकती है, और जिला न्यायालय या डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से भी जमानत की याचिका को निरस्त कर दिया जाता है, लेकिन ऐसे अपराध में जब एक आरोपी अपने प्रदेश की उच्च न्यायालय में जमानत के लिए याचिका दायर करता है, तो केवल आरोपी या उसके परिवार में किसी आपात स्थिति होने के कारण ही उसे जमानत मिल सकती है। किन्तु उच्च न्यायालय में भी जमानत मिलने के अवसर काफी कम होते हैं।

भारतीय दंड संहिता और भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता में भारतीय दंड संहिता की धारा 406 के मामले में किसी भी व्यक्ति को अग्रिम जमानत देने का प्रावधान नहीं दिया गया है, यदि कोई व्यक्ति न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए अपनी याचिका दायर करता है, तो उसकी याचिका निरस्त कर दी जाती है।
 

धारा 406 में वकील की जरुरत क्यों होती है?
भारतीय दंड संहिता में धारा 406 का अपराध एक बहुत ही संगीन और गैर जमानती अपराध है, जिसमें एक दोषी को कारावास की सजा के साथ - साथ आर्थिक दंड का भी प्रावधान दिया गया है, जिसमें कारावास की सजा की समय सीमा को 3 बर्षों, तक बढ़ाया जा सकता है। ऐसे अपराध से किसी भी आरोपी का बच निकलना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, इसमें आरोपी को निर्दोष साबित कर पाना बहुत ही कठिन हो जाता है। ऐसी विकट परिस्तिथि से निपटने के लिए केवल एक वकील ही ऐसा व्यक्ति हो सकता है, जो किसी भी आरोपी को बचाने के लिए उचित रूप से लाभकारी सिद्ध हो सकता है, और अगर वह वकील अपने क्षेत्र में निपुण वकील है, तो वह आरोपी को उसके आरोप से मुक्त भी करा सकता है। और विश्वास के आपराधिक हनन जैसे बड़े मामलों में ऐसे किसी वकील को नियुक्त करना चाहिए जो कि ऐसे मामलों में पहले से ही पारंगत हो, और धारा 406 जैसे मामलों को उचित तरीके से सुलझा सकता हो। जिससे आपके केस को जीतने के अवसर और भी बढ़ सकते हैं।

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