जमानत के बाद भी जेल से रिहाई में देरी होने पर सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए 7 दिशा-निर्देश
जमानत मिलने के बावजूद निर्धारित शर्तों को पूरा करने में नाकाम रहने वाले विचाराधीन कैदियों के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अहम कदम उठाया है। कोर्ट ने जमानत के बाद हिरासत में रहने वाले कैदियों के लिए गाइडलाइन जारी की है। अदालत जमानत को लेकर नियम तैयार करने के मामले में स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही है। गाइडलाइन इस प्रकार है....
दर्ज करनी होगी जमानत तिथि
- जब अदालत अंडरट्रायल कैदी दोषी को जमानत देती है, उसे उसी दिन या अगले दिन जेल अधीक्षक के जरिए कैदी को ई-मेल से जमानत आदेश की सॉफ्ट कॉपी भेजनी होगी। जेल अधीक्षक को ई-जेल या किसी अन्य साफ्टवेयर मे जमानत देने की तारीख दर्ज करनी होगी।
- यदि आरोपी को जमानत देने की तिथि से 7 दिन के भीतर रिहा नही किया जाता है तो, जेल अधीक्षक का कर्तव्य होगा कि वह जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव को सूचित करे।
- एनआइसी ई-जेल सॉफ्टवेयर मे आवश्यक फिल्ड बनाने का प्रयास करेगा, ताकि जेल विभाग जमानत देने और रिहाई की तारीख दर्ज कर सके।
- डीएलएसए सचिव अभियुक्तों की आर्थिक दशा का पता लगाने के लिए परिवीक्षा अधिकारियों या पैरा लीगल वालंटियर्स की मदद ले सकते हैं।
- ऐसे मामले जहाँ अंडरट्रायल या दोषी अनुरोध करता है कि वह रिहा होने के बाद जमानत बॉन्ड या जमानत दे सकता है, तो कोर्ट अस्थाई जमानत देने पर विचार कर सकता है।
- यदि जमानत देने की तारीख से 1 महीने के भीतर जमानत बॉन्ड पेश नही किया जा सकता है तो कोर्ट स्वतः संज्ञान ले सकता है।
- अभियुक्त दोषी की रिहाई मे देरी का एक कारण स्थानीय जमानत पर जोर देना है। सुझाव दिया जाता है की कोर्ट स्थानीय जमानत की शर्त नही लगाए।
कप्पन 2 साल बाद हुए जेल से रिहा
केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को गुरुवार को जेल से रिहा किया गया। कप्पन को अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था। वह हाथरस जा रहे जहाँ एक दलित युवती की बलात्कार के बाद मौत हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कप्पन को जमानत दी थी। मनी लॉन्ड्रिंग मामले में भी उन्हें तीन महीने बाद जमानत मिल गई, लेकिन नौकरशाही चूकों के कारण रिहाई अटकी रही।
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