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मौत से पहले के वीडियो - ऑडियो बयान है या नहीं ?

हाईकोर्ट ने नहीं माना ऑनर किलिंग सीबीआई जांच की मांग: हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती,
मौत से पहले के वीडियो - ऑडियो बयान है या नहीं ?




उदयपुर के झल्लारा में 11 मई 2022 को हुए कथित ऑनर किलिंग का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया। याचिकाकर्ता उमा पालीवाल ने अपने वकीलों के जरिए राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है और मामले की सीबीआई जांच की मांग की है। इसके अलावा यह मुद्दा भी उठाया है कि क्या मौत से पहले जारी किए गए वीडियो और वॉयस नोट्स को मृत्यु पूर्व बयान के रूप में माना जा सकता है या नहीं ?

याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि पीड़ित लड़की विशाखा संस्थान में काम करती थी। 10 मई 2022 को पीड़िता के साथ उसके परिजनों ने संस्थान में बुरी तरह मारपीट की थी। इसके बाद उसने एक वीडियो बनाकर भेजा था, जिसमें आशंका जताई थी कि अपनी पसंद से शादी करने की वजह से उसे आज मार दिया जाएगा।

11 मई 2022 को सुबह 8:30 बजे उसने विशाखा संस्थान में फोन किया और कहा था कि वह ऑफिस आ रही है, लेकिन 9 बजे वह मृत पाई गई। दो घंटे के बाद बिना पुलिस को सूचना दिए अंतिम संस्कार कर दिया गया। जांच अधिकारियों ने 26 दिन में जांच पूरी कर ली और आईपीसी की धारा 306 में चार्जशीट भरते समय पीड़िता की मां को ही आरोपी बना दिया। हाईकोर्ट ने भी मामले को ऑनर किलिंग का नहीं माना।

याचिका में उठाए गए ये सवाल...
हमले के बाद पीड़िता द्वारा रिकॉर्ड वीडियो को मृत्यु पूर्व बयान माना जा सकता है या नहीं?

मौत के कारणों और पुलिस को बताए बिना पीड़िता के शव के अंतिम संस्कार में परिजनों की जल्दबाजी के कारण चार्जशीट में स्पष्ट नहीं ।

परिजनों ने पीड़िता को होश में लाने या उसे मृत घोषित कराने के लिए किसी चिकित्सक को बुलाने का प्रयास क्यों नहीं किया?

जांच अधिकारी ने अपने जवाब में मृत्यु पूर्व बयान को अतिशयोक्तिपूर्ण माना?

मृत्यु पूर्व बयान केवल पुलिस अधिकारी / डॉक्टर / मजिस्ट्रेट द्वारा ही दर्ज हो सकता है?

Written By - KR Choudhary

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