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निर्णय, डिक्री और आदेश मे अंतर

निर्णय (Judgement), डिक्री (Decree / आज्ञप्ति) और आदेश (Order) में अंतर



जजमेंट, डिक्री और आर्डर तीनों ही शब्द सिविल मामले से संबंधित हैं। इन तीनों शब्दों का उपयोग सिविल कोर्ट द्वारा किया जाता है। सिविल केस पक्षकारों को स्वयं चलाना होता है। कोई भी सिविल मामला, आपराधिक मामले (Criminal Case) की तरह स्टेट (राज्य) के द्वारा नहीं चलाया जाता है बल्कि इसे पक्षकार (Parties) स्वयं चलाते हैं। कोर्ट मामले को सुनती है ऐसे मामले में कोर्ट समय समय पर ऑर्डर देती- है, एक जजमेंट देती है और जजमेंट के साथ एक डिक्री पारित करती है।
किसी भी सिविल केस को कोर्ट के समक्ष चलाए जाने की एक लंबी प्रक्रिया होती है। वाद पत्र के जरिए वादी कोर्ट में अपनी बात रखता है। इसके बाद कोर्ट प्रतिवादी को बुलाकर उससे जवाब मांगती है और प्रतिवादी अपना जवाब प्रस्तुत करता है । वादी के वाद पत्र और प्रतिवादी के जबाबदावे को देखने के बाद कोर्ट इशूस (Issue) बनाती है। इन इशूस के ऊपर ही केस चलता है। इन इशूस से संबंधित सभी सबूतों को वादी और प्रतिवादी को कोर्ट के सामने पेश करना होते हैं।
सबूतों को देखने के बाद कोर्ट उसमें अपना निष्कर्ष देती है। ऐसा निष्कर्ष एक जजमेंट लिखकर प्रस्तुत किया जाता है। इस जजमेंट के साथ में डिक्री भी होती है। यह डिक्री पक्षकारों के अधिकारों को स्पष्ट करती है अर्थात जजमेंट में जो निष्कर्ष निकला है उस निष्कर्ष के आधार पर कोर्ट कम शब्दों में संपूर्ण जजमेंट का सार डिक्री में लिख देती है और पक्षकारों के अधिकारों को स्पष्ट कर देती है।

जजमेंट क्या है -
जजमेंट किसी भी विवाद के तथ्यों पर कोर्ट का एक विस्तार पूर्वक निष्कर्ष है जो कोई भी विवाद के तथ्यों पर आए हुए सबूतों का बहुत बारीकी से अवलोकन कर प्रस्तुत करता है। जैसे कि अगर किसी मकान पर कोई दावा किसी पक्षकार द्वारा किया गया है और कोर्ट के सामने यह मुकदमा लाया गया है कि वह मकान उसका है और उस पर किसी व्यक्ति ने कब्जा कर लिया है तब कोर्ट विवाद के तथ्यों को देखती है। इस बात की जांच करती है कि क्या वाकई ऐसा कोई मकान है और उस पर कोई कब्जा हुआ है और कब्जा किस व्यक्ति द्वारा किया गया है जिस व्यक्ति का कब्जा होता है उस व्यक्ति से कोर्ट यह पूछती है कि आप बताएं आपके पास में आपके मालिकाना हक के लिए क्या दस्तावेज हैं, वह अपना मालिकाना हक कोर्ट में साबित करता है जो भी दस्तावेज आते हैं उनका बहुत बारीकी से अवलोकन किया जाता है। उस अवलोकन के बाद जजमेंट लिखा जाता है। मुकदमे की एक परिस्थिति को संक्षिप्त में करके जजमेंट में लिख दिया जाता है जो भी बयान
पक्षकारों ने दिए हैं उनके बयानों को जजमेंट में लिखा जाता है फिर भी जजमेंट (निर्णय) किसी भी पक्षकार के अधिकारों को तय नहीं करता है और न ही किन्हीं पक्षकारों की ड्यूटी बताता है।

डिक्री क्या है?
सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 2 (2) में डिक्री को परिभाषित किया गया है जहां डिक्री को कोर्ट की एक औपचारिक अभिव्यक्ति बताया गया है। यदि सरल शब्दों में कहें तो डिक्री जजमेंट में अंत में लिखी जाने वाली कोर्ट की अभिव्यक्ति है जो विवाद के तथ्यों पर निकले हुए निष्कर्ष से पक्षकारों के अधिकार और दायित्व के संबंध में स्पष्ट उल्लेख कर देती है।
डिक्री का लाभ यह होता है कि पक्षकारों को समस्त निर्णय पढ़ने की आवश्यकता नहीं होती अपितु डिक्री पढ़कर ही निर्णय के आधार को समझा जा सकता है। डिक्री में कोर्ट कम शब्दों में अपनी बात को रख देती है और इसी के साथ पक्षकारों के अधिकार और दायित्व को स्पष्ट कर देती है। डिक्री को एक अधिक कानूनी बल प्राप्त होता है यदि कोर्ट में कोई डिक्री पारित की है और जिस पक्षकार के विरुद्ध ऐसी डिक्री पारित की है कोर्ट उस पक्षकार से इस डिक्री के पालन की अपेक्षा करता है। कोर्ट यह स्पष्ट कर देती है कि जिस व्यक्ति के विरुद्ध डिक्री पारित की गई है वह उसका पालन करे। अगर डिक्री का पालन नहीं किया जाता है तब जिस व्यक्ति के पक्ष में ऐसी डिक्री पारित की गई है उस व्यक्ति द्वारा कोर्ट में एक मुकदमा लगाकर डिक्री का पालन करवाया जा सकता है।
इन सभी बातों के बाद यह कहा जा सकता है कि संपूर्ण निर्णय में डिक्री ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। डिक्री को कोर्ट द्वारा दिए गए एक सर्टिफिकेट के तौर पर माना जा सकता है, ऐसा सर्टिफिकेट जो किसी व्यक्ति के संबंध में उसके अधिकारों को बताता है और घोषणा कर रहा है। पक्षकार अपनी बात को रखने के लिए केवल छोटी सी डिक्री बता सकते हैं उसके लिए उन्हें कोई बड़ा भारी जजमेंट बताने की आवश्यकता नहीं होती
है।

आदेश क्या है?
एक सिविल केस में कोर्ट समय- समय पर आदेश देती है। ऐसे आदेश सिविल केस को चलाने के लिए- आवश्यक होते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि कोई सिविल केस में अनेक महीनों की तारीख लगती है सभी तारीख पर कोर्ट कोई न कोई आदेश पारित करती है। ऐसे आदेश को आर्डर शीट पर लिखा जाता है तथा उस पर न्यायाधीश के हस्ताक्षर होते हैं यह आदेश मामले को कोर्ट में चलाने के लिए देना होते हैं पर इस आदेश से किसी भी व्यक्ति के दायित्व और अधिकार तय नहीं होते हैं और न ही विवाद के तथ्यों पर कोई हल निकलता है। अपितु यह तो केवल कोर्ट अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए मामले को आगे बढ़ाता है।

Written By - Adv. KR Choudhary

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